तीसरे मोर्चे की मजबूरी

देश में पहले कांग्रेस के खिलाफ क्षेत्रीय दल अपने अस्तित्व को बचाने के लिए सामने आये कांग्रेस के खिलाफ हल्ला बोला और कई राज्यों में तो इन दलों ने काँग्रेस को लम्बे समय के लिए सत्ता से बाहर कर दिया उदाहरण के रूप में उत्तर प्रदेश और बिहार में कांग्रेस पिछले दो दशक से सत्ता के बाहर है,बंगाल में भी कम्युनिस्ट के बाद तृणमूल का राज स्थापित हुआ,ओडिसा में बीजद डेढ दशक से सत्ता पर काबिज है, तमिलनाडु में हाल ये रहा कि जब पूरे देश में कांग्रेस का राज था और इंदिरा जी ने इमरजेंसी लगाया तो उस वक्त एक अकेले तमिलनाडु में ही विपक्ष की सरकार थी, और आज भी कांग्रेस तमिलनाडु में पैर नही जमा पाई।
लेकिन क्या आज भारतीय जनता पार्टी को देश की सत्ता से हटाने के लिए यह क्षेत्रीय दल ही काफी है? क्या कांग्रेस को दरकिनार करके थर्ड फ्रण्ट (तीसर मोर्चा) मोदी और शाह की जोड़ी को मात दे पायेगा? प्रश्न इस लिए उठता है क्योंकि कई राज्य ऐसे है जहाँ भाजपा का मुकाबला सीधे कांग्रेस से होगा। उन सीटों की संख्या 150 से 200 तक हो सकती है। यह सीटें मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि जगहों की है। तो क्या तीसरा मोर्चा इतना प्रभावी होगा कि इन सीटों पर कांग्रेस व भाजपा दोनों को ही पछाड़ कर अपनी बढ़त बना लेगा? अगर तीसरे मोर्चे की परिकल्पना सच होकर जमीन पर उतर जाती है तो भी इन दलों में से शायद कोई ऐसा दल नही होगा जो 40 सीट के ऊपर अपना उमीदवार उतार सके। जोकि तीसरे मोर्चे की सबसे बड़ी कमजोरी साबित होगी। राज्यों के हालात पर नजर डालें तो यूपी में सपा बसपा रालोद में गठबंधन होने पर कोई दल 40 सीट के ऊपर अपना दावा करते नही दिख रहा। बिहार में कुशवाहा के NDA छोड़ने बाद से ही राजद के सीटों का समीकरण बदल सकता है। राजद के कोटे से ही मांझी की 'हम' पार्टी भी आस लगाए बैठी है। बंगाल में तृणमूल और कम्युनिस्ट लगातार भाषा बदल रहे है और महाराष्ट्र में एनसीपी अकेले कुछ करती दिख नही रही। 
सभी स्थितियों को ध्यान रखते हुए तीसरा मोर्चा इतना प्रभावी दिख नही रहा कि वह बिना कांग्रेस के मोदी को दिल्ली से बाहर कर पाए। निष्कर्ष यह निकाला जा सकता है कि आने वाले आम चुनावों में कांग्रेस की भूमिका महत्वपूर्ण नजर आ रही है। गठबंधन चाहे चुनाव के बाद हो या चुनाव से पहले तैयार हो विपक्ष के गैरकांग्रेसी नेताओं को कांग्रेस तथा राहुल गांधी को एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में लेना होना। 

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