फेक न्यूज़ के जाल में फसता भारत

भारत समेत पूरी दुनिया फेक न्यूज की जाल में उलझती जा रही है। फेक न्यूज़ का आलम यह छाया रहा कि बहुचर्चित कॉलिंस डिक्शनरी ने 2017 का वर्ड ऑफ द ईयर 'फेक न्यूज़' को ही घोषित कर दिया। दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति डॉनल्ड ट्रम्प भी इस फेक न्यूज़ के जाल से अछूते नही रहे। राष्ट्रपति चुनाव के समय से ही ट्रम्प और फेक न्यूज़ की बीच घमासान शुरू हो गया था जो कि आज भी जारी है। ट्रम्प ने तो वहाँ की मेन स्ट्रीम मीडिया से ही दो दो हाथ करने की कसम खा रखी है।
इतिहास में जाये तो ज्ञात होता है कि इतिहास का सबसे पुराना बड़ा फेक न्यूज़ महाभरत के समय में भी अपनी भूमिका अदा कर गया था। और वह फेक न्यूज़ अश्वत्थामा की मृत्यु का था जिसे प्रचारित करने का दोष युधिष्ठिर के सर लगा। ये तो हुई इतिहास की बात। लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया फेक न्यूज़ का साधन तथा दायरा दोनों ही बढ़ता चला गया। आज स्थिति यह है कि भारत जैसे बहुलतावादी, लोकतांत्रिक देशों में इस फेक न्यूज़ की बीमारी ने अपनी जड़ें मजबूत कर लीं है और देश का सिस्टम इनसे निपटने में लगातार नाकाम साबित हो रहा है। सोशल मीडिया के युग में जहां तमाम नेटवर्किंग साइट्स तथा सोशल मेसेजिंग एप्प मानव जीवन को सरल व सुगम बना रहे है वही दूसरी तरफ फेक न्यूज़ भी अपना आकार लगातार बड़ा करता जा रहा है। और कहीं न कहीं यह आतंकियों का हथियार भी बनता जा रहा है। आज तो भारत में इस फेक न्यूज़ के कारण लोगों की जाने तक ले ली जा रही हैं। कोई बच्चा चोरी की फेक न्यूज़ प्रचारित कर देता है तो कोई गोवंश की तस्करी की फर्जी खबरों को पोस्ट करके माहौल बनाने में लगा है। देश में जो बच्चा चोरी का गैंग धड़ल्ले से चला रहे हैं उनका तो कुछ नही होता लेकिन किसी निर्दोष की जान भीड़ द्वारा ले ली जाती है। कुछ वर्दी वालों की कृपा से गोवंश की हेरा फेरी करने वाले अपना धंधा दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ा रहे है। और दूसरी तरफ गोवंश की खबर पर एक वर्दी वाले को गोलियों से भून दिया जाता है। सच्चाई क्या है जानने पर बताया जाता है कि जांच चल रही है। उधर जांच खत्म भी नही होती है और इधर फेक न्यूज़ के कारण एक नई घटना सामने आने को तैयार हो जाती है। 
क्या फेक न्यूज़ को हमारे देश के लोकतंत्र के लिए खतरा नही मानना चाहिए? देश में 'लोकतंत्र ख़तरे में है' का नारा लगाने वाले नेता और संगठन इस फेक न्यूज़ पर अपनी चुप्पी को साधे हुए है। फेक न्यूज़ पर उनका क्या स्टैंड है उन्हें जनता के सामने स्पष्ट करना चाहिए। 
भारत में तो फेक न्यूज़ के आधार पर लोग सुप्रीम कोर्ट तक अपनी याचिका लेकर पहुंचे है। ताजा मामला राफेल विमान का है जिसमें कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि ' ऐसा लगता है जैसे याचिकाकर्ता ने अपने याचिका में जो मुद्दा उठाया है वह न्यूज़पेपर की लाइनों तथा किसी आर्टिकल आदि से लिया गया है'। 
यह तो छोटा उदाहरण है जो कि सार्वजनिक है। ऐसे ही कई उदाहरण देश में लाखों हैं जो कि हमारे समाज के लिए घातक है और लोकतंत्र के लिए एक चुनौती है। जिसे हमारे सिस्टम को ठीक करना होगा। सरकार को फेक न्यूज़ के बढ़ते रूप तथा दायरे को कम करने के लिए हर मोर्चे पर सजग होना पड़ेगा तथा इस बीमारी से निपटने के लिए नेटवर्किंग कम्पनियों तथा सरकारी मशीनरी को सही तरीके से काम करने के लिए व्यवस्थित करना होगा। जिससे कि देश को इस फेक न्यूज़ रूपी दीमक से बचाया जा सके। 

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